बीबीसीले खोल्यो नाकाबन्दीको रहस्य

काठमाण्डु, २४ मंसिर– भारतको चर्चित मिडिया बीबीसी हिन्दीले नेपाल–भारत सीमामा भइरहेको यथार्थबारे खुलासा गरेको छ । भारत सरकारले नेपालमाथि नाकाबन्दी नलगाएको बताएता पनि नेपालमा अत्यावश्यक बस्तुको अभाव भएको र मधेसीले पनि सीमामा अवरोध नपुर्याएको बताउँदै बीबीसीले नियन्त्रित नाकाबन्दी भएको खुलासा गरेको हो । नाकाबन्दीका नाममा सीमा क्षेत्रमा निकै चलखेल भएको बताउँदै त्यसमा लेखिएको छ, ‘खासमा यो नियन्त्रित नाकाबन्दी हो । यसको रिमोट कन्ट्रोल कुनै अज्ञात हातमा छ । यहाँ भने त्यही नाममा निक्कै चलखेल भैरहेको छ ।’
सवारीलाई आउन जान कुनै रोकतोक नरहेको बताउँदै उसले १४ किलोमिटर लामो लाईन भएको र गाडीवालासँग पैसा लिएर केही गाडी छाड्ने गरिउको खुलासा गरेको छ । सीमा सुरक्षाले माथिको आदेश भन्दै सवारीका साधनलाई नेपाल प्रवेश गर्न नदिएको बीबीसीले खुलाएको छ । सुमाचारमा भारतले नेपालमाथि राजनीतिक खेल खेलेको घुमाउरो पारामा भनिएको छ । लेखिएको छ, ‘नेपालमा सबैभन्दा बढी तनाव इन्धनले गर्दा भएको छ । ट्रकको लाइनमा तमाशा हेर्न आएकाहरु पनि भन्छन् यो भारतले नेपालमा हिँड्न डुल्न समेत बन्द गरेर बाध्य गराउने रणनीति हो ।’
पढौँ बीबीसीको पूर्ण समाचारः अनिल यादव वरिष्ठ पत्रकार, सोनौली सीमा से सोनौली बॉर्डर पर खड़े होने भर से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के छान-कूटकर दिए बयान के निहितार्थ नज़र आने लगते हैं. दरअसल, यह नियंत्रित नाकाबंदी है जिसका रिमोट कंट्रोल ऊपर किसी अज्ञात हाथ में है. यहां ज़मीन पर इसके नाम पर बहुत से खेल चल रहे हैं. विदेश मंत्री ने संसद में कहा था कि भारत की ओर से जाने वाले ट्रकों को ख़ुद नेपाल के मधेसी आंदोलनकारियों ने रोक रखा है. सोनौली सीमा पर कोई आंदोलन नहीं, फिर भी दो-तीन दिनों में एक बार निर्धारित संख्या में ही ट्रक जाने दिए जाते हैं. इनकी 14 किलोमीटर लंबी क़तार नौतनवां से काफ़ी आगे तक है. जबकि बसों और दूसरे वाहनों के आने-जाने पर कोई रोक नहीं है. तो ट्रकों पर ही पाबंदी क्यों? सिर्फ यही एक सवाल नहीं, हर सवाल के जवाब में कस्टम और सशस्त्र सुरक्षा बल के अफ़सर कहते हैं कि सब ऊपर के आदेश पर किया जा रहा है. ऊपर किसके आदेश से? यह पूछने पर वे ऐसे हंसते हैं जिसका मतलब है, ‘क्या आप वाकई इतने भोले हैं कि जिसे नेपाल का पांच साल का बच्चा तक कोस रहा है, उसे आप नहीं जानते!’ उस पार नेपाल में जाकर यही सवाल पूछें तो चौंकाने वाला सवाल सुनाई देता है. ‘कैसे पड़ोसी हैं आप’, जैसे यह पत्रकार भारत सरकार का प्रतिनिधि हो. फिर वो कहते हैं, “हमारा संविधान अभी बना भी नहीं और आप संशोधन कराने लगे. हमने नहीं माना तो आप हमारा खाना-पीना क्यों रोकने लगे?” कस्टम अधिकारियों का दावा है कि अब हर दिन क़रीब 100 ट्रकों को जांच के बाद जाने दे रहे हैं. लेकिन जाने के लिए कौन से ट्रक चुने जाएंगे (स्थानीय ज़बान में इसे कहते हैं कौन सी गाड़ी काटी जाएगी)?. इसमें कई पेंच हैं. महाराजगंज ज़िले के कोल्हुई और नौतनवां में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और नेपाल ऑयल कॉरपोरेशन के एलपीजी टैंकरों को ट्रकों की मुख्य क़तार से बाहर निकालकर मैदान में खड़ा करवा दिया गया है. दवा लदे ट्रकों को तो प्राथमिकता पर निकाला जाता है लेकिन पेट्रोल, डीज़ल और गैस ले जाने वाले टैंकरों को पुलिस नहीं जाने देती. इसी तरह संगमरमर, कार, बाइक लदे ट्रक भी जाने दिए जा रहे हैं. नेपाल में सर्वाधिक दिक़्क़त ईंधन की है. ट्रकों की क़तार में घुसकर तमाशा देखने वाले भी कह देते हैं कि भारत नेपाल का चलना-फिरना बंद कर उसे मजबूर करना चाहता है. ट्रक ड्राइवर बताते हैं कि दो महीने से खड़े ट्रकों में से कौन जाएंगे, इसके लिए भी पुलिस वाले पैसे लेते हैं. पैसा लेने का रेट है- सामान्य ट्रक 300, बड़ा ट्रक 500 रुपए. कंटेनरों के लिए इससे भी अधिक. क्योंकि एक कंटेनर अगर एक दिन खड़ा रहता है, तो माल मंगाने वाली कंपनी को क़रीब 13,000 रुपए का नुक़सान होता है. इस वक़्त सोनौली बॉर्डर की सड़क और नौतनवां रेलवे स्टेशन पर एक अनुमान के मुताबिक़, 20 अरब रुपए का सामान फंसा है. ट्रकों से सामान उतारकर छोटी गाड़ियों और ठेलों से पार कराने की कोशिश हो रही है. नेपाल के व्यापारी और कारखाने अपने ऑर्डर रद्द कर रहे हैं क्योंकि कोई नहीं जानता कि नाकाबंदी कब ख़त्म होगी. भ्रष्टाचार के आरोपों के जवाब में पुलिस वाले कहते हैं कि हम लोग मुफ़्त में बदनाम किए जा रहे हैं. पुलिस कहती है, “हमारे अफ़सरों के पास केंद्र और यूपी के मंत्रियों और बड़े नेताओं के फ़ोन आ रहे हैं कि उनके खास उद्योगपतियों के ट्रक जाने दिए जाएं और जब हम उन्हें अफ़सरों के हुक्म पर जाने देने के लिए क़तार से निकलवाते हैं, तो आरोप लगते हैं.”